Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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वंदन-अभिनंदन!
संतों जैसे श्रीमद् राजचन्द्रजी आदि की गंभीर कविताओं |
अर्पित है, मंगलमयी भावना पर न अति विस्तार और न अति संक्षिप्त विवेचन कर उन्हें सरल, ग्राह्य एवं लोकप्रिय बनाया है।
सर्वप्रथम पंडितरत्न श्री सुमनकुमारजी म.सा. के संयममय आपके विवेचन की शैली आदर्श शैली है। जिसमें स्वर्णजीवन का हार्दिक वन्दन-अभिनन्दन करता हुआ यह कठिन, एवं अनेकार्थ शब्दों का प्रासंगिक अर्थ, अन्य सद्कामना करता हूँ कि आपकी यशोगाथा चारों दिशाओं आगमों एवं ग्रंथों के उद्धरणों द्वारा उस अर्थ का ज्यादा में प्रसरित हो। आप कमल की भाँति इस लोक और स्पष्टीकरण तथा सरल एवं स्पष्ट विवेचन किया जाता है। धर्मलोक में रहते हुए संयम की साधना-आराधना में स्वस्थ आपके द्वारा विवेचित ग्रंथ को पढ़ने के बाद पाठक को रहे, दीर्घायु हो क्योंकि सच्चा संयम ही मोक्ष का द्वार है। उक्त विषय में कोई शंका शेष नहीं रहती है। यही है
आपश्री से चतुर्विध संघ को बहुत अपेक्षाएं हैं। आपकी विद्वत्ता एवं विवेचन शैली की विशेषता। अतः आप ज्ञानार्णव हैं।
पचास वर्ष में अनेक उतार-चढ़ाव आपने देखे हैं। जब जब भी अन्यमतियों ने जिन शासन की आलोचना
“श्रमणसंघ का निर्माण समाज की बहुत बड़ी उपलब्धि की, अवांछित टीका-टिप्पणी की, तब-तब आपने निर्भीक
है। परन्तु आज न अनुशासन है, न दृढ़ता है, न एकरूपता रूप तत्काल प्रतिवाद कर उन्हें निरुत्तरित किया। यह
है, न संगठन और न संप्रदायविहीन। इन सब बिन्दुओं आपकी असाधारण उत्पात बुद्धि एवं क्षमता है कि आपके का प्रतिफल है-सर्वत्र शिथिलता का बोलबाला । जो भावनाएं सम्मुख सभी वादी निरुत्तर हो गए। अतः आप वादी और कामनाएं श्रमणसंघ के निर्माण में संजोई गई और गजसिंह हैं। जिसकी एक गर्जना से वादी सभी मृग आज जो कुछ हो रहा है वह आप से ओझल नहीं है अतः तितर-बितर हो जाते हैं।
पुनः एक दृढ़ इच्छा शक्ति व क्रान्ति की आवश्यकता है ___ आपने जिनशासन की महती प्रभावना की है तथा
तभी हम इककीसवीं सदी में जैनधर्म के प्रति अपने समाज जिनशासन की पताका को और अधिक फहराया है। जैन
राष्ट्र व विश्व को आकर्षित कर सद्मार्ग की ओर मोड़ सिद्धांतों का आपथी ने जैनों, अजैनों में खूब प्रचार-प्रसार
सकते हैं।" किया है। आपकी प्रेरणा से जैनियों ने कई ऐसे “सर्वजन ___ राष्ट्रपिता महात्मागांधी द्वारा प्रयोग की गई अहिंसा हिताय सर्व जन सुखाय” कार्य किए हैं जिससे जैन समाज
और विज्ञान के समन्वय से विश्व-बंधुत्व एवं विश्व शांति की, जैनधर्म की कीर्ति एवं यश फैला है। अतः आप
संभव है। गंभीर चिंतन व मनन कर इस ओर अतिशीघ्र जिनशासन प्रभावक हैं।
अग्रसर होने की आवश्यकता है। कथनी-करनी की अतः हे पूज्यप्रवर ! मैंने आपके लिए जो उपमाएँ एकरूपता सच्चा आचरण है। आज संख्या नहीं गुणवत्ता लिखी है, वे यथार्थ हैं। हे यशस्वी ! जिनशासन प्रभावक! की आवश्यकता है। जिनशासन देव हम सबकी सोयी हुई प्रखरवादी, महान लेखक ! ओजस्वीवक्ता ! असाधारण आत्माओं को जागृत करे और हम सब मिलकर एकजुटता नेतृत्वशक्ति के धारक ! दीक्षा-स्वर्ण-जयंति के उपलक्ष्य में से कुछ कर सके, ऐसी मंगलमय मनोभावनाओं के साथ - कोटिशः वंदन। 0 चमनलाल मूथा
0 शांतिलाल पोखरणा जैन (भीलवाड़ा राज.) रायचूर
सदस्य : श्री अ.भा.जैन कॉन्फ्रेन्स
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