Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
मौका मिला। तब से लेकर आज तक पूज्य श्री की हम | आपश्री का प्रवचन प्रतिदिन प्रार्थना से प्रारंभ होता नाहर बंधुओं पर और मुझ पर विशेषतः कृपा रही है। है। आपश्री के कंठ में सरस्वती का प्रवाह है। आपके दि. २६ जनवरी, १६६३ को माम्बलम स्थानक भवन के कंठ से निकली प्रार्थना को श्रोता मंत्र मुग्ध होकर सुनते हैं उद्घाटन का कार्य सानन्द सम्पन्न हुआ।
एवं आपके साथ स्वर में स्वर मिलाकर गाने में तल्लीन हो आप श्री के प्रवचनों की शैली बेजोड़ है। घंटों तक
जाते हैं। निष्कर्ष यह है कि आपका व्यक्तित्व अनूठा धारा प्रवाह प्रवचन देना आपकी अद्वितीय विशेषता है।
है। आपकी दीक्षा की स्वर्ण जयंति के शुभ अवसर पर
दीर्घायु के लिए मंगल कामना! चरण युगल में वंदना ! गूढ़ से गूढ़ शास्त्रों के अर्थ को सुबोध एवं सरल भाषा में
अभिनन्दन! श्रोताओं को समझाने की कला में आप प्रवीण है। प्रवचन के समय श्रोताओं के ध्यान को इस प्रकार केन्द्रित कर
- पारस जे. नाहर देते हैं, जैसे कोई जादूगर अपनी अद्भुत कला से दर्शकों
टी. नगर, चेन्नै-१७ को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। निर्भीकता एवं स्पष्ट-वादिता आदि आपके गुण, दानवीर कर्ण के कवच सर्वजनहिताय,सर्वजन सुखाय एवं कुण्डल से प्रतीत होते हैं। सच्ची बात कहने में आप किसी प्रकार का संकोच नहीं करते हैं। आप श्री अक्सर परम पूजनीय, वादी गजसिंह, प्रखरवक्ता, आगमों कहा करते हैं, - "क्या करूँ ? मेरी जबान जरा कड़वी के उद्भट विद्वान, संस्कृत-प्राकृत भाषा के निष्णात ज्ञानी, है। सच्ची बात कहे बिना मैं रह नहीं सकता और सच्चाई ज्ञानार्णव, जिनशासन प्रभावक, श्रमणसंघ के सलाहकार सदा कड़वी ही होती है।"
एवं मंत्री श्री सुमनमुनिजी म.सा. “श्रमण” के चरणों में जबान से आप चाहे कितने ही कठोर हों, लेकिन
सविधि वंदन। हृदय आपका अत्यन्त कोमलता से परिपूर्ण है। आपकी __ पूज्यप्रवर की दीक्षा-स्वर्ण-जयंति मनाई जा रही है। स्पष्टवादिता से यदि आपका कोई श्रावक नाराज होकर प्रसन्नता हुई कि यह दीक्षा-स्वर्ण-जयंति संपूर्ण भारत के कछ काल के लिए आपके दर्शनार्थ आता न दिखें तो
जैनियों के लिए अति आनन्दमय उत्सवरूप है। आपका हृदय अन्दर ही अन्दर अपने आपको कचोटने
___आपने श्रमणजीवन के यशस्वी/कल्याणकारी/श्रेयस्करी लगता है। श्री संघ के प्रबन्धकों से आपश्री पूछ ही लेते हैं, - “क्या बात है ? फलां आदमी आजकल दिखाई
वर्ष पूर्ण किये हैं। आपने तिनाणं-तारयाणं के अनुरूप
अपनी आत्मा का कल्याण तो किया ही है अपितु सहस्रों नहीं पड़ रहा है। जब वह व्यक्ति वापस दिखाई देता है
लाखों भव्य आत्माओं को अपनी सद्-प्रेरणा से धर्माभिमुख तो आपश्री का हृदय कमल खिल उठता है। आप श्री
करके उनकी आत्मा का भी कल्याण किया है। अनेकानेक बड़े ही स्नेह से उस व्यक्ति को अपने पास बिठाकर उसके संशय अथवा गलत फहमी को दूर कर देते हैं। ऊपर से
व्यक्तियों के सम्यक्त्व को दृढ़ कर उनको मुक्ति-मार्ग की कठोर एवं भीतर से कोमल, आपका यह विशेष गुण
ओर प्रेरित किया है। पूज्य गुरुदेव मरुधर केसरी श्री मिश्रीमलजी म.सा. की आपने जैनधर्म के गूढ़ एवं क्लिष्ट सिद्धांतों को सरल याद को ताजा कर देता है, जिन्हें स्नेह से सब लोग एवं स्पष्ट भाषा में विवेचन कर, उन्हें प्रकाशित कर 'कड़क मिश्री' कह कर पुकारा करते थे।
साधारण व्यक्ति के ग्राह्य योग्य किया है। अन्य महान्
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