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[पच्चोस]
"तीर्थ महात्म्यनी प्ररूपणा गुरुतणी, सांभले श्रावक जन्न । सिद्धाचल उपर नवनवा चैत्यनो, जीर्णोद्वार करे सुदिन्न । कारखानोतिहाँ सिद्धाचल उपरे मंडाव्यो महाजन्न । द्रव्य खरचाये अगणित गिरीउपरे, उल्लसित थयोरे तन्न ।
संवत् १७८१-८२ एवं ८३ में आपके सदुपदेश से गिरी राज पर विशाल पैमाने में 'जीर्णोद्धार एवं चित्रकारी का काम हुआ' कवियण के शब्दों में
"संवत सतर एकासीये ब्यासीये त्रयासीये कारीगरे काम" चित्रकार सुधानां काम ते, दृषद् उज्वलतारे नाम।" यह निर्माण कार्य सिद्धाचल पर कहाँ चला था, कवियण ने इसका कुछ भी उल्लेख नहीं किया। किन्तु श्री तीर्थराज पर के शिलालेख से मालूम होता है कि यह कार्य 'खरतरवसही' में चला था।
१-वर्तमान में जो आनन्दजी कल्याणजी की पेढी है उसका इतिहास इस प्रकार है । शान्तिदास सेठ के वंश में हेमा भाई हुए । इन्होंने सवा तीन लाख रुपये खर्च करके उजमबाई व नंदीश्वर ट्रॅक बनवाई और सं. १८८६ में प्रतिष्ठा कराई। उनके पुत्र प्रेमाभाई हुए। उन्होंने १६०५ में शत्रुजय का संघ निकाला और वहां मन्दिर बनवाया (जैन सा. र. पृ. ६७२) इन्हीं प्रेमा भाई के समय में आनन्दजी कल्याणजी नाम पड़ा तथा उसका विधान बना । सं. १८७४ में अहमदाबाद अंग्रेजों के शासन में पाया इस: लिये नामकरण व विधान की जरुरत पड़ी होगी। उसके पहले से पेढ़ी तो थी जिसकी स्थापना श्रीमद् के उपदेश से हुई थी । पेढ़ी की स्थापना का उल्लेख कवियण ने अपनी पुस्तक में किया है ।
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