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प्रथम खण्ड
पार्थ जिन चैत्य बंदन
जय जिणवर जय जगनाह, जय परम निरंजण । जय परमेश्वर पास नाह, दुख दोहग · भंजण ।। वामा उरवर हंसलो ए, मुनिवर मन अाधार । समरंता सेवक भगी, तु तारे संसार ।। १ ।।
च्यवन चैत्र वदि चोथ (दिन),नमीया सुर(नर) इंद । दशम पोष वदी (शुभ समे), जन्म थयां जिनचंद ।। मरु शिखर नवरावीयो ए, मली चौसठ सुरिद । पाप पंक निज धोयवा, लेवा परमानंद ।। २ ।।
पोषह वदी इग्यारसे, प्रभु संजम लीधो । धीर वीर खंति' पमुह, गुण गणह समिद्धो । लोका लोक प्रकाशकर, पाम्या केवल नाण । चैत्रह वदि च उथी दिवस, अतिशय गुणह पहाण ।। ३ ।।
श्रावण सुदि आठम दिवस, जिण शिवपुर पत्तो । श्री सम्मेते अड़ अनंत, अविचल गुण रत्तो ।। कल्याणक जिनवर तणा ए, आपे परम कल्याण । देवचंद्र गणि संथुवे, पास नाह जग' भाण ।। ४ ।।
१-वामा माता के हृदय-सरोवर के हंस
२-क्षमा आदि
३-जगत् में सूर्य समान
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