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बम खण्ड
वरीये हे देवरीयें वचंद्र पद · सार, . करीये हे करीयें भगति सदा खरी ॥उप०॥८॥
(५) ढाल--यतिनी देशी इम गाती रंभा गीत, प्रभु' आव्या जग सुविहीत । ग्यान दरसण चरणानंदी, हरख्या सविप्रभु पय वंदी ।।१।। प्रभु देशना अति सुखकार, भाख्या निश्चय विवहार । कारण कारज विवि भाखी, शिव साधन शिक्षा दाखी ।।२।। सर्व जीव अछे सम एष, संग्रह सत्ता नै लेष । जे पर परणति रागी, तस् कर्मनी भावठि लागी ॥३।। जसु तत्व रुचि थयो ज्ञान, ते साधे साध्य अमान । . निज व्यक्ति शक्ति निजरंगी, साधै गुण शक्ति अनंगी ॥४॥ शुचि श्रद्धा भासन रमणे, कारक निज कार्य ने गमणे । भागे पर परणति रीत, एकत्त्वे तत्व प्रतीत ।।५।। परभाव अरोचक दृष्टे, निज ज्ञान सुधा नी वृष्टं । परभोगी भाव अभावें, करतादि च्या निज भावें ॥६।। जारणी निज परणति स्वामी, कुरण थायें पर परणामी। ए भावे निजगुण पो, ते सुद्ध समाधि संतोषे ।।७।। दुख पोषक पर परसंग, न भजै हेज धरि रंग । निज तत्व रमौ भवि प्राणी, देवचंद्र वदै इम वाणी ॥८॥
मनधर्गश्रद्धासुविनीत
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