Book Title: Shrimad Devchand Padya Piyush
Author(s): Hemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 287
________________ पंचम खण्ड ( ढाल २ -- मोरो मन मोह्यौ इरण डूंगरे --ए देशी) माताजी नेमि देशना सुणी रे, मुझ थयूँ आज प्रद मनुज भव प्राज सफलो थयो रे, प्राज सुभ उदय दिणंद | मा० ॥ १२ ॥ देवकी चित्त प्रति गह गही रे, इम कही मधुर मुख वारिण । धन तूं धन्य मति ताहरी रे, जिरण सुरगी नेमि मुख वारिण | | ० | १३| माताजी एह संसार मां रे, सुख तरणो नही लवलेश । वस्तु' गत भाव अवलोकता रे, सर्व संसार कलेश || मा० || १४ || करम थी जनम तनु करम थी रे, कर्म ए सुख दुख मूल । प्रतम धरम नवि ए कदा रे, आज टली मुझ भूल ।। मा० ।। १५॥ नेमि चरणे रही आदरु रे, चरण शिव सुख कंद । विषय विष मुझ हवे नवि गमे रे, सांभर्यु अत्मानंद मा० ।। १६ ।। पुत्र माताजी अनुमति प्रापीय रे, हवे मुझ इम न रहाय । एक खि अविरति दोषनी रे, वातड़ी वचने न कहाय | मा० ॥ १७॥ मोह वस बोलती देवकी रे, विलपती' इम कहै वात । तुझ विरह मुझ न सुहात ॥ मा० | १८ || ते ए किस्य भाखीयुं रे, १ - वस्तु स्वरूप को देखते हुए । [ Jain Educationa International १८७ २ - विलाप करती हुई । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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