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बीमद् देवचन्द्र पक्ष पीयूष .
वच्छ संजम अति दोहिल रे, तोलवो मेरु इक हाथ । प्राण जीवन मुझ वालहो रे, माहरे तूंहिज अाथ ।।मा०।।१६।। मात तुमे श्राविका नेमि नी रे, तुम्ह थी एम न कहाय । मोक्ष सुख हेतु संयम तणो रे, किम करो मात अंतराय ॥मा०।।२०।। वच्छ मुनिभाव दुःकर घणो रे, जीपवो' मोह भूपाल । विषय सेना सहु वारवी रे, तुम्हे छो बाल सुकुमाल ।।मा०॥२१॥ माताजी' निजधर प्रांगण रे, बालक रमै निरबीह । तिम मुझ आतम धरम में रे, रमण करतां किसी बीह ।।मा०।२२।। मोह विष सहित जे वचनड़ा रे, ते हवैं मुझ न छिबंत । परम गुरु वचन अमृत थकी रे, हुं थयो उपशम वंत ।मा०॥२३।। भव* तणो फंदहवे भांजवो रे, जीतवो मोह परि वृद । आत्मानंद पाराधवो रे, साधवो मोक्ष सुख कंद मा०।२४।। नेमि थकी कोई अधिको जो हवें रे, तो मानीये तास वचन रे। मातजी कांइ नवि भाखीये रे, माहरू संजमें मन ।।मा०॥२५॥
(ढाल ३-धन धन साधु शिरोमणि ढंढरणो, ए देशी) धन धन जे मूनिवर ध्याने रम्यां रे, समता सागर उपशमवंत रे । विषय कषाये जे नडीया नहीं रे, साधक परमारथ सुमहंत रे ।ध०।२६।
१-मोहराजा को जीतना २-मोहराजा की विषय रूपी सोना ३-जैसे अपने घर के प्रांगण में बच्चा निर्भीक खेलता है वैसे ही आत्म धर्म में रमण करते हुए मुझे क्या डर है। ४-संसार के मूल को नष्ट करता है। ५-मोहरिपु को जीतना है ।
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