Book Title: Shrimad Devchand Padya Piyush
Author(s): Hemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 285
________________ पचम खण्ड [१८५ श्री गज सुकुमाल मुनिनी ढालो (ढाल-१-बंगाल-राजा नही नमे ए देशी) द्वारिका नगरी ऋद्धि समृद्ध, कृष्ण नरेसर भुवन प्रसिद्ध ।चेतन सांभलो। वसुदेव देवकी अंग' सुजात, गज सुकुमाल कुमर विख्यात ।चे०।१।। नयरी परिसर श्री जिनराय, समवसर्या निर्मम निर्माय ।।०।। यादव कुल अवतंस मुरिंणद, नेमिनाथ केवल गुण वृद।चे०॥२॥ त्रिभुवन पति श्री नेम जिणंद, आव्या सुणि हरख्या गोविंद' ।०।। सज सामहियो वंदण काज, हरषे+ वंद्या श्री जिनराज ॥०॥३॥ पाठान्तर-+हरस घटी बांधा जिनराज गुटका इसी गुटके के पृ. ५६ में प्रशस्ति :सं १८ १७ ना वर्षे मिती आश्विन मासे कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथी वार 'शुक्रे श्री उपाध्याय जी श्री देवचंद जी गरिणजी तत् शिष्य वा. श्री मनरूपजी गणि तत् शिष्य पं. रायचंद मुनिनालिखित भणशाली खड़ गोत्रे शाह पानाचंद कपूरचंद पठनार्थम् झवेरीवाड़ा मध्ये राजनगर मध्ये स्तुरस्तु ।। कल्याणमस्तु शुभम् भवतु ॥ श्री १-पुत्र २-कृष्णजी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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