Book Title: Shrimad Devchand Padya Piyush
Author(s): Hemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 283
________________ पंचम खण्ड (३ ढाल-तुठो तुठो रे साहब जग नो तूटो- देशी ) आयो आयो रे अनुभव प्रातम चो प्रायो । शुद्ध निमित्त ग्रालंबन भजतां, आत्मालंबन पायो रे || अनु० ॥ १ ॥ आतम क्षेत्री गुण परयाय विधि, तिहां उपयोग रमायो । पर परगति पर री ते जाणी, तास विकल्प गमायो रे ॥ अनु०॥२॥ पृथक्त्व ' वितर्क शुक्ल आरोही, गुरण गुरणी एक समायो । पर्याय द्रव्यं वितर्क एकता, दुर्द्धर मोह खपायो रे || अनु०॥३॥ अनंतानुबंध सुभट नें काढी, दर्शन मोह गमायो । त्रिगति हेतु प्रकृतिक्षय कीधी, थयो ग्राम रस रायो रे || अनु० || ४ || द्वितीय तृतीय चोकड़ी खपावी, वेद युगल क्षय थायो । हास्यादिक सत्ता थी ध्वंसी, उदय वेद मिटायो रे || अनु०||५|| थई प्रवेदी ने अविकारी हण्यो संजवलन कषायो । मार्यो मोह चरण क्षयकारी, पूरण समता समायो रे || अनु० ॥ ६ ॥ घन घाती कि योधा लडीया ध्यान एकत्व' ने ध्यायो । ज्ञानावरणादिक सुभट पडीया जीत निसारण घुरायो रे || अनु०|७| केवल ज्ञान दर्शन गुण प्रगटयो, महाराज पद पायो । शेष धाति कर्म क्षीरण दल, उदय अबाध दिखायो रे || अनु० ||८|| सयोगि केवली थया प्रभंजना, लोका लोक जरणायो । तीन कालनी विविध वर्त्तना, एक समये प्रोलखायो रे || अनु०॥६॥ [. १८३ १ - शुक्ल ध्यान का एक पाया २- दूसरा पाया ३-तीसरा पाया ४-योद्धा ५- वस्तु की भूत-भावी और वर्तमान परिवर्तन । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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