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श्रीमद् देवचंद पद्य पीयूष
सर्व साधवी से वंदना कीधी, गुणी विनय उपजायो । देव देवी तव करे गुण स्तुति, जग | जय पडह वजायो रे ।।अनु०॥१०॥ सहम कन्यकाए दीक्षा लीधी, प्राश्रव सर्व तजायो । जग उपगारी देश विहारी, शुद्ध धरम दोपायो रे ॥अनु० ।।११।। कारण योगे कारज साधे, तेह चतुर गाईजे । प्रातम साधन निर्मल माध्ये, परमानंद पाईजे रे ।।अनु०।।१२।। ए अधिकार कह्यो गुण रागे, बैरागे मन लावी । वसुदेव हिंडि तणे अनुसारे, मुनि गुण भावना भावी रे ॥अन ०।१३। मुनि गुण थुणतां भाव विशुद्धे, भव विच्छेदन थावे । पूर्णानंद ईहा थी प्रगटे, साधन-शक्ति जमावे रे ।।अनु० ।।१४।। मुनि गुण गावो भावना भावो, ध्यावो सहज समाधि । रत्नत्रयी एकत्त्वे खेलो, मिटे अनादि उपाधि रे ॥अनु०॥१५॥ राजसागर पाठक उपगारी, ज्ञान धरम दातारी । दीपचंद पाठक खरतर वर, देवचंद सुखकारी रे ॥अनु०॥१६॥ नयर लींबड़ी मांहि रहीने, वाचंयम स्तुति गाई । प्रात्मरसिक श्रोता जन मन में साधन रुचि उपजाई रे ॥अन०।१७। इम उत्तम गुण माला गावो, पावो हरष बधाई ।
जैन धरम मारग रुचि करता, मंगल लीला सदाई रे ॥अनु०॥१८॥ पाठान्तर-1जय
संवत १८२३ वर्षे कार्तिक वदि १३ शुक्रवासरे श्री सूरत वन्दरे श्राविका फूलबाई पठनार्थम् पाठान्तर प्रति-नित्य. मरिण जीवन जैन लाइब्रेरी पत्र ३ नं. १४६ संवत् १८ १४ जेठ सुदि १४ भौ। लिपिकृतं भणशाली श्री पानाचंद कपूरचंद पठनार्थम्
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