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सूत्र नें अर्थ अनुयोग ए, बीय नियुक्ति संयुत्त रे । तीय भाष्ये नये भावियो, मुनि वदे' वचन एम तंत' रे || सा० ।। १० ।। ज्ञान समुद्र समता भरघा, संवर दया भंडार रे । तत्त्व आनंद आस्वादता, वंदीये चररण गुरण धार रे |सा० ।।११।। मोह उदये मोही जिस्या, शुद्ध निज साध्य लयलीन रे । 'देवचंद्र' ते मुनि वंदीये ज्ञान अमृत रस पीन रे || सा० || १२ | तृतीय एषणा समिति सज्झाय
(ढाल - भांझरीया मुनिवर, ए देसी )
समिति श्रीजी एषणा जी, पंच महाव्रत मूल । अनाहारी उत्सर्ग नो जी, ए अपवाद अमूल ॥ मन मोहन मुनिवर, समिति सदा चित्त धार || ए आकरणी ॥ | १ || चेतनता चेतन तरणी जी, नवि पर संगी तेह | तिरण पर सनमुख नवि करें जी, आत्म रती व्रती जेह ||म० || २ || काय योग पुद्गल ग्रहें जी, एह न प्रातम धर्म ।
जागग करता भोगता जी, हुँ माहरो ए मर्म | | ० ||३|| अनभिसंधि' चल वीर्य नी जी, रोधक शक्ति प्रभाव । पिर अभिसंधिज वीर्य थी जी, केम ग्रहें पर भाव | | ० ||४॥ इम पर त्यागी संवरी जी, न गहे पुद्गल खंध | साधक कारण राखवा जी, प्रसनादिक
संबंध ||म० ॥ ५ ॥
१- बोलो ५ आत्म शक्ति
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३ - सर्वथा प्रहाररहित रहना ६- मोक्ष साधक शरीर
श्री देवचन्द्र पद्य पीयूष
२-सार
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४ - इन्द्रियजन्म प्रवृत्ति
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