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पंचम खण्ड
सद्दहणा' आगम अनुमोदता, गुण कर संयम चालि सु० व्यवहारे साचो ते साचवे, प्रायति लाभ संभालि सु० ॥ध०।।११।। दुष्कर कार थकी अधिका कहें, वृहत्कल्प विवहार ।।सु०॥ उपदेश माला भगवई अंग में, गीतारथ अधिकार सु० ॥ध.।।१२।। भाव चरण थानिक फरस्या, विना न हुवें संयम धर्म ।।सु०।। तो स्याने झूळू ते उचरें, जे जाणे प्रवचन मर्म ।।सुधि ॥१३॥ यश लोभे निज सम्मति थापना, परजन रंजन काज सु० ज्ञान क्रिया द्रव्य थी साचवें, तेह नहीं मुनिराज सु० ॥ध०।।१४।। बाह्य दया एकांते उपदिसें, श्रुत आम्नाय विहीन ।सु०। बग' परि ठगता मूरख लोकें, बहु भमशे ते दीन सु० ॥३०॥१५॥ अध्यातम परिणति साधन ग्रहो, उचित वहें आचार ।सु०। जिन आणा अविराधक पुरुष जे, धन्य तेह नो अवतार सु०॥ध०।१६। द्रव्य क्रिया नैमित्तिक हेतु छे, भाव धर्म लयलोन सु० निरुपाधिकता जे निज अंस नी, मानें लाभ नवीन सु० ॥३०॥१७॥ परिणति दोष भणी जे निंदता, कहता परिणति धर्म सु० - योग ग्रंथना भाव प्रकाशता, तेह विदारें कर्म सु ॥ध०।।१८।। अल्प क्रिया पिण उपगारी पणे, ग्यानी साधे हो सिद्धि सु.. देवचंद्र सुविहित मुनि वृद ने, प्रणम्यां सयल समृद्धि सु. ।।ध०।।१६।
१-पागमों के प्रति पूर्ण श्रद्धा, आगमोक्त आचरण करने वाले की अनुमोदन ये दो गुणकारी हे । २-ज्ञान की परंपरा ३-बगुल के समान ४-विभावदशा ५-स्वभावदशा
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