Book Title: Shrimad Devchand Padya Piyush
Author(s): Hemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar
View full book text
________________
श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पोयूका
बंध प्रबंध ए प्रातमा तु. करता अकरता एह ॥भ०॥ एह भोगता अभोगता तु. स्यादवाद गुण गेह ।।भ०।।११।। एक अनेक सरुप ए तु. नित्य अनित्य अनादि ।भ०।। सद सद भावे पररणम्यो तू. मुक्त शकल उम्माद ॥भ०।१२।। तप जप किरिया खप थको तु. अष्ट करम न विलाय' भ०।। ते सहु प्रातम ध्यान थी तु. खिरण मैं खेरू थाय ।।भ०।।१३।। सुद्धातम अनुभव विना तु. बंध हेतु सुभ चालि ॥भ०॥ आतम परणामे रह्या तु. एहज अाश्रव' पालि ।। भ०।।१४।। इम जारणी निज प्रातमा तु. वरजी सकल उपाधि ।।भ०॥ उपादेय अवलंब ने तु. परम महोदय' साधि ।।भ०।।१५।। भरत, इलासुत, तेतली तु. इत्यादिक मुनि वृद ।। भ०।। प्रातम ध्यान थी ए तरया तु. प्रणमे ते 'देवचंद्र' ॥भ० ।।१६।।
ढाल ६-भावना महात्म्य (प्रशस्ति)
(सेलग शेपूँज सीधा-ए देशी) भावना मुगति निसांणी जाणी, भावो प्रासति प्राणी रे। .. योग, कषाय, कपटनी हांणी, थाये निरमल झारणी जी । भा०॥१।। पंच भावना ए मुनि मन ने, संवर खांरिग वखरणी जी। वृहत्कल्प सूत्र नी बांणी, दीठी तेम कहाणी जी ।। भा०॥२॥
१-क्षय होना २-क्षय ३-पाश्रव को रोकने वाला संवररुप ४-मोक्ष ५-नमूना ६-अास्था ७-ध्यानी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292