Book Title: Shrimad Devchand Padya Piyush
Author(s): Hemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 275
________________ पंचम खण्ड [ १७५ तीन लोक त्रिहुं काल नी तु. परणति तीन प्रकार ।।भ०॥ एक समे जाणे तिणे तु. नाण अनंत अपार ॥भ०॥३॥ समयांतर सह भाव नो तु. दरसण जास अरणंत ।।भ०॥ आतम भावे थिर सदा तु. अक्षय चरण मर्हत ।।भ०।।४।। सकल दोष हर शाश्वतो तु. वीरज परम अदीन ।भ०॥ सूक्ष्म तनु बंधन बिना तु. अबगाहन स्वाधीन ।'भ०।।५।। पुद्गल सकल विवेक थी तु. सुद्ध अमूरत रूप ।।भ०।। इद्री' सुख निसपृह थया तु. अकथ्य अबाह सरुप ।।भ०॥६॥ द्रव्य तणे परिणाम थी तु. अगुरु लघुत्व अनित्य ॥भ०॥ सत्य स्वभाव मयी सदा तु. छोडी भाव असत्य ।।भ०॥७॥ निज गुण रमतो राम ए तु. सकल अकल गुण खान: भ०॥ परमातम परम ज्योति ए तु. अलख अलेप वखाण ।।भ०॥८॥ पंच' पूज्य मां पूज्व ए तु. सरव ध्येय थी ध्येय ॥भ०।। व्याता ध्यानअरु ध्येय ए तु. निहचे एक अभेय भात।। अनुभव करतां एहनो तु. थाये परम' प्रमोद ।।भ०।। एक रूप अभ्यास सु तु. शिव सुख छे तसु गोद ।।भ० ।।१०।। पाठान्तर-+खेम सूखम खाणि सरुप १-इन्द्रियजन्य सुखों के प्रति निस्पृहता आने पर प्रात्मा का अकश्य सुख स्वरुप प्रकट हो जाना है। २-पांच परमेष्ठि। ३-ग्रानन्द प्राप्त होता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292