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पंचम खण्ड
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तीन लोक त्रिहुं काल नी तु. परणति तीन प्रकार ।।भ०॥ एक समे जाणे तिणे तु. नाण अनंत अपार ॥भ०॥३॥ समयांतर सह भाव नो तु. दरसण जास अरणंत ।।भ०॥ आतम भावे थिर सदा तु. अक्षय चरण मर्हत ।।भ०।।४।। सकल दोष हर शाश्वतो तु. वीरज परम अदीन ।भ०॥ सूक्ष्म तनु बंधन बिना तु. अबगाहन स्वाधीन ।'भ०।।५।। पुद्गल सकल विवेक थी तु. सुद्ध अमूरत रूप ।।भ०।। इद्री' सुख निसपृह थया तु. अकथ्य अबाह सरुप ।।भ०॥६॥ द्रव्य तणे परिणाम थी तु. अगुरु लघुत्व अनित्य ॥भ०॥ सत्य स्वभाव मयी सदा तु. छोडी भाव असत्य ।।भ०॥७॥ निज गुण रमतो राम ए तु. सकल अकल गुण खान: भ०॥ परमातम परम ज्योति ए तु. अलख अलेप वखाण ।।भ०॥८॥ पंच' पूज्य मां पूज्व ए तु. सरव ध्येय थी ध्येय ॥भ०।। व्याता ध्यानअरु ध्येय ए तु. निहचे एक अभेय भात।। अनुभव करतां एहनो तु. थाये परम' प्रमोद ।।भ०।।
एक रूप अभ्यास सु तु. शिव सुख छे तसु गोद ।।भ० ।।१०।। पाठान्तर-+खेम सूखम खाणि
सरुप
१-इन्द्रियजन्य सुखों के प्रति निस्पृहता आने पर प्रात्मा का अकश्य सुख स्वरुप प्रकट हो जाना है। २-पांच परमेष्ठि। ३-ग्रानन्द प्राप्त होता है।
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