Book Title: Shrimad Devchand Padya Piyush
Author(s): Hemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar
View full book text
________________
१७४ ।
श्रीमद् देवचन्द पद्य पीयूष
परिजन मरतो देखी ने रे, शोक करे जन मूढ' । अवसरे वारो' आपणो रे, सहु जननी ए रूढ रे ।।प्रा०॥१३॥ सुर' पति चक्की हरि' हलीरे, एकला परभव जाय । तन धन परिजन सहू वली रे, कोई सखाई न थाय रे ।।प्र०।।१४।। एक प्रातमा माहरो रे, ज्ञानदिक गुणवंत । बाह्य योग सहुअवर छ रे, पाम्या वार अनंत रे ।।प्रा०।१५।। करकंडू, नमि, निग्गइ रे, दुमुह, प्रमुख ऋषिराय । मृगा पुत्र, हरिकेश ना रे, बंदु हुं नित पाय रे ॥प्रा०॥१६॥ साधु चिलाती सुतभलो रे, वली अनाथी तेम । इम मुनि गुण अनुमोदतां रे, देवचंद्र सुख क्षेम रे ।।प्रा०॥१७।।
___ ढाल पंचवीं तत्त्वभावना की
(इण परि चंचल आउखौ जीव जागौरी-ए देशी ) चेतन ए तन कारमो तुम ध्यावो री, शुद्ध निरंजन देव । भविक तुम ध्यावो री, सुद्ध सरुप अनूप ।।भ०॥यांकणी॥१॥ नरभव श्रावक कुल लह्यो तु० लीधो समकित सार ।भ०।। जिन आगम रुचि सुसुरणो तु. आलस निंद निवार ।।भ०॥२॥ पाठान्तर-- . ४सोग अवसर वारइ
५-सहायक ६-मूर्ख
१-इन्द्र २-चक्रवती ३-वासुदेव ४-बलदेव ८-प्रनित्य २ तेजम और कार्मरण के बंधन बिना
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292