Book Title: Shrimad Devchand Padya Piyush
Author(s): Hemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 264
________________ १६२ ] श्रीमद् देवचन्द्र पछ पीयूष द्रव्य भाव साची सरधा धरी, परिहरि संकादि दोष सु० कारण कारज साधन पादरी, साधे साध्य संतोष सु० ॥ध०॥२॥ गुण पर्याय वस्तु परखता, सीख उभय भंडार सु० परिणति शक्ति स्वरुपें परिणमी, करता तसु व्यवहार सु० ।।ध०।।३।। लोकसन्न' वितिगिच्छा वारता, करता संयम वृद्धि सु० । मूल उत्तर गुण सर्व संभारता, धरता आतम शुद्धि सु० ॥ध०॥४॥ श्रुतधारी श्रुतधर निश्रारसी, वशी कर्यात्रिक योग सु० अभ्यासी अभिनव श्रुत सार ना, अविनाशी उपयोग सु० ॥३०॥५॥ द्रव्य भाव आश्रव मल टालता, पालता संयम सार सू० साची जैन क्रिया संभारतां, गालता कर्म विकार सु० ॥३०॥६।। सामायिक आदिक गुण श्रेणी में, रमता चढते रे भाव सु० तीन लोक थी भिन्न त्रिलोक में, पूजनीक जसु पाव ।।सु०॥०॥७॥ अधिक गुणी निज तुल्य गुणी थकी, मिलता जे मुनिराज सु० परम समाधि निधि भव जलधि ना, तारण तरण जहाज सु०॥धा। समकित वंत संयम गुण ईहता, धरवा असमर्थ सु० संवेगपक्षी भावे शोधता, कहेंता साचो रे अर्थ सु० ॥ध.।।६।। आप प्रशंसायें नवि माचता, राचता मुनि गुण रंग ।।सु.।। अप्रमत्त मुनि श्रुत' तत्व पूछवा, सेवे जासु अभंग सु० ॥ध०।।१०।। १-लोग संज्ञा २-ज्ञान का तत्त्व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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