Book Title: Shrimad Devchand Padya Piyush
Author(s): Hemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 262
________________ १६० ] भीम देवचन्द्र पक्ष पीयूष इम जाणी थिर संयमी, न करे चपल पलिमंथ स० प्रात्मानंद आराधता, अज्झत्थी' निग्रंथ स० ॥व०॥७॥ साध्य सुद्ध परमातमा, तस साधन उत्सर्ग स० बारे भेदे तप विष, सकल श्रेष्ट व्युत्सर्ग स० ॥व०॥८॥ समकित गुण ठाणे करयो, साध्य अजोगी भाव स० उपादानता तेहनी, गुप्ति रूप थिर भाव स० वि०॥६॥ गुप्ति रुचि गुप्ते रम्या, कारण समिति प्रपंच स० करता थिरता ईहता, ग्रहें तत्व गुण संच स० ॥व०।।१०।। अपवादें उत्सर्गनी, दृष्टि न चूके जेह ।स। प्रणमें नित प्रति भावस्युं, 'देवचंद्र' मुनि तेह स० ॥व०॥११॥ अष्टम कायगुप्ति सज्माय (ढाल-फूल ना चोसर प्रभुजी ने सिर चढें-ए देशी) गुप्ति संभारो रे त्रीजी मुनिवरू, जेहथी परम आनंदो जी। मोह टलें घन घाती परिगलें, प्रगटें ज्ञान अमंदो जी ।।गु०॥१॥ किरिया शुभ असुभ भव बीज छे, तिण तजी व्यापारो जी। चंचल भाव ते पाश्रव मूल छे, जीव अचल अविकारो जी ।।गु०॥२॥ - १-आत्मार्थी २-अपवाद का सेवन करते हुए उत्सर्ग की और लक्ष्य न चूके। ३-गलजाय. ४-संसार का कारण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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