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________________ १५२ ] सूत्र नें अर्थ अनुयोग ए, बीय नियुक्ति संयुत्त रे । तीय भाष्ये नये भावियो, मुनि वदे' वचन एम तंत' रे || सा० ।। १० ।। ज्ञान समुद्र समता भरघा, संवर दया भंडार रे । तत्त्व आनंद आस्वादता, वंदीये चररण गुरण धार रे |सा० ।।११।। मोह उदये मोही जिस्या, शुद्ध निज साध्य लयलीन रे । 'देवचंद्र' ते मुनि वंदीये ज्ञान अमृत रस पीन रे || सा० || १२ | तृतीय एषणा समिति सज्झाय (ढाल - भांझरीया मुनिवर, ए देसी ) समिति श्रीजी एषणा जी, पंच महाव्रत मूल । अनाहारी उत्सर्ग नो जी, ए अपवाद अमूल ॥ मन मोहन मुनिवर, समिति सदा चित्त धार || ए आकरणी ॥ | १ || चेतनता चेतन तरणी जी, नवि पर संगी तेह | तिरण पर सनमुख नवि करें जी, आत्म रती व्रती जेह ||म० || २ || काय योग पुद्गल ग्रहें जी, एह न प्रातम धर्म । जागग करता भोगता जी, हुँ माहरो ए मर्म | | ० ||३|| अनभिसंधि' चल वीर्य नी जी, रोधक शक्ति प्रभाव । पिर अभिसंधिज वीर्य थी जी, केम ग्रहें पर भाव | | ० ||४॥ इम पर त्यागी संवरी जी, न गहे पुद्गल खंध | साधक कारण राखवा जी, प्रसनादिक संबंध ||म० ॥ ५ ॥ १- बोलो ५ आत्म शक्ति Jain Educationa International ३ - सर्वथा प्रहाररहित रहना ६- मोक्ष साधक शरीर श्री देवचन्द्र पद्य पीयूष २-सार For Personal and Private Use Only ४ - इन्द्रियजन्म प्रवृत्ति www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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