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पोषक आहार |
ए शरीर भव मूल छें जी, तसु जाव प्रयोगी नवि हुवें जी, तां अनादि आहार ||०||७||
कवल आहारें नीहार छें जी, एह अंग' व्यवहार । धन्य प्रतनु परमातमा जी, जिहां निश्चलता सार ||०|८|
पर परिणति कृत चपलता जी, किम छूट से एह । ऐम विचारी कारणें जी, करें गोचरी तेह ॥ मु०॥६॥ क्षमा दयालु पालुप्रा जी, निस्पृही तन नीराग । निर्विषयी गज गति परें जी, विचरें मुनि महाभाग ।। मु०।१०। परमानंद रस अनुभवे जी, निज गुण रमता धीर । 'देवचंद' मुनि' वदतां जी, लहीये भव जल तीर ॥ मु० | ११ ||
श्रीमद देवचन्द्र पद्य पीयूष
मौन धारी मुनि नवि वदें, आचरण ज्ञान नें ध्यान नों,
साधु जी समिति बोजी धरो, वचन निर्दोष परकास रे । गुप्ति उत्सर्गं नो समिति ते, मार्ग अपवाद सुविलास रे ॥ सा० ॥ १ ॥ भावना बीय' महाव्रत तरणी, जिन भरणी सत्यता मूल रे ।
भावहिं सकता वधें, सर्व संवर
अनुकूल
रे || सा० ॥२॥
गेह रे ।
वचन जे प्रश्रव साधक उपदिसें तेह रे ॥ सा०||३||
१- शरीर की रीति
द्वितीय भाषा समिति सज्झाय
( भावना मालती चुसीइं, ए देशो )
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२- दूसरा
३- जिनेश्वरों ने कहा है
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