Book Title: Shrimad Devchand Padya Piyush
Author(s): Hemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 251
________________ पंचम खण्ड प्रथम ईर्या समिति सज्माय ( ढाल - प्रथम गोवाल तो भवें जी) प्रथम अहिंसक व्रत तरणी जी, उत्तम भावना एह । संवर काररण उपदिसी जी, समता रस गुरण गेह || मुनीसर ईय समिति संभार आश्रव' कर तन योग' नी जी । दुष्ट चपलता वार मुनीसर ! ईर्या ममिति संभार ||ए प्रकरणी ।।१।। मुनि जिन काय गुप्ति उत्सर्ग नो जी, प्रथम समिति अपवाद । ईर्या ते जे चालवो जी, धरि आगम विधिवाद ॥ मु०॥२॥ ज्ञान ध्यान सज्झाय में जी, थिर बैठा मुनिराज । शाने चपल पणो करें जी, अनुभव रस सुखराज || मु०|३|| जी, पांमी कारण चार । के प्रहार निहार ॥ मु० ॥४॥ उठे वस ही थकी वंदन गामंतरें जी, परम चरण संवर धरु जी, सर्व जाण जिन दिठ्ठ | सुचि समता रुचि उपजे जी, तिरण मुनि ने ए इट्ठ * । । मु० । ५॥ राग वर्ध थिर भाव थी जी, ज्ञान विना परमाद । वीतरागता ईहता जी, विचरे मुनि साल्हाद ||०||६|| ६ १४६ १- पुण्य-पाप का बंध कराने वाला २- काय योग ३ - अपने स्थान से बाहर जाने के मुनि के लिये ४ कारण हैं-१ जिनवंदन २ विहार ३ गोचरी पानी ४ शौचादि । ४- जि. नेश्वर देव का दर्शन करने से ५-प्रियकारी ६ चाहते हुए For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292