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पंचम खण
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मन गज वश न करी सके रे लाल, तसु ध्यानादिक खेह' रे ।।सु०॥ जे न सधे श्रुत तप थकी रे लाल, मन थिर साधे तेह रे सुगमन.१७॥ अनंत कर्म चउ भेद ना रे लाल, मन थिर कीधां जाय रे ।।सु०।। जसु मन थिर ते शिव लहे रे लाल, दंडो शाने काय रे ॥सुामना।। श्रुत तप यम मन वश विना रे लाल, तुस खंडन सम जाण र ।।सु०॥ . मन वश विणु शिव नवि लहेरे लाल मन वशे शिव सुख ठाण ।सु०।मन०।६ मन वशे निर्गुण गुण लहे रेलाल, जिण विण सहु गुण जाय रे।।सु.।। तीन भुवन जीत्या मने रे लाल, मन जयकार को थाय रे ।।सु०।मन॥१०॥ श्रुतधर पण मन वश विना रे लाल, नवि जाणे निज रूप रे ।।सु०॥ शांत विषय वश मनकरी रे लाल, मुनि थाये शिव भूप रोसु०।मन०।११॥ स्वर्ग मृत्यु पाताल में रे लाल, द्वीप उदधि गिरि सीस रे ।।सु०॥ तीन लोक में नवि भमे रे लाल, देवचंद्र गत रीस रे ॥
सु मन०।।१२।।
अष्ट प्रवचन माता सज्माय
॥ दोहा ॥ सुकृत कल्पतरु श्रेणिनी, वर उत्तरकुरु* भौमि । अध्यातम रस ससिकला, श्री जिन वाणी नौमि ॥१॥
१-निरर्थक २-मन को वश किये बिना, ज्ञान, तप, अहिंसादि का पालन आदि सब तुसों को खांडने के समान है। ३-समुद्र ४-पर्वत-शिखर पर ५-उत्तर कुरुक्षेत्र ६-चन्द्रकला ७-नमस्कार करता हूँ
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