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द्वितीय खण्ड
श्री फलवर्द्धि पार्श्वनाथ स्तवन.
(ढाल-सखी री प्यारउ प्यारउ करती, एहनी) सखी री वामा राणी नंदा, अश्वसेन पिता सुख कंदा । प्रभावती राणी इंदा, दीजै मुझ परमाणंदा हो लाल ॥१॥ वीनती ए मुझ धरियइ, पातिक सगला हरियइ । मुझ ऊपर महिरज करीयइ, तिम केवल कमला वरियइ हो लाल ।।२।। सखी री तुझ सेवन पाइ दुहली' , योनि गई सहु अहिली । हिव सेवा कीजइ सहिली, मुझ इच्छा पूरउ वहिली हो लाल ॥३॥ सखी री ते सहु पातक रोकइ, ते जय पामइ इण लोकइ । रिद्धि लहइ बहु थोकइ, जे तुझ पद पंकज' धोकइ हो लाल ॥४॥ श्री फलवधिपुर राया, जब तुझ दरसरण मई पाया । दुख दोहग दूर गमाया, हिव आणद थया सवाया हो लाल ॥५॥ मई' योनि सहु अवगाही, तुझ सेवा कबहि न साही । हिव मई तुझ आण पाराही, मुझ लीजइ बांह समाही हो लाल ।।६।। जब तुझ मुख दरिसण दीसइ, तब मुझ मन अधिक उहींसइ । गणि राजहंस सुसीसइ, कहैं देवचंद सुजगीसइ हो लाल ।।७।।वी०।।
। इति श्री पार्श्वनाथ गीतं • यह स्तवन श्रीमद् द्वारा स्वयं लिखित पत्र २ की प्रति से उद्धत
-प्रभु की सेवा से दुर्गति सारी दूर हो गई २-मैं अनेक योनियों में जन्मा किन्तु आपकी हवा कभी न की। ३-अब मैंने तुम्हारी आज्ञा की आराधना की है अतः अब मेरी ह पकड़ लो।
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