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रागादिक सुं मली ने चेतन ! पुद्गल संग भमो । चउगति मांहे गमन करता, निज प्रातमने दमो || हो चेतन ॥ २ ॥ ज्ञानादिक गुण रंग धरीने, कर्म को संग वमो | प्रतम अनुभव ध्यान धरता, शिवरमरणी सुं रमो || हो चेतन || ३॥ परमातम नुं ध्यान करंतां, भवस्थितिमां न भमो । देवचंद्र परमातम साहिब, स्वामी करीने नमो | हो चेतन ० ||४॥ पंचेन्द्रिय विषय त्याग--पद
चेतन ! छोड दे, विषयन को परसंग,
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गिरोह' फिरत विलोल फरस' वश, बंधोइ फिरत मातंग | | ० | १॥ कंठ छैदायो मीन आपनो, रसना के परसंग |
१ - गिलारी.
६- मछली
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नेत्र विषय कर दीप शिखा पै, जल जल मरत पतंग || चे० ॥२॥
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षट्पद' जल मांहे फस मूरख, खोयो अपनो अंग ! वीणा शब्द सुन श्रवण ततखिन, मोही मर्यो रे कुरंग' ||०||३|| - एक एक इंद्रिय चलत बहु दुःख, पायो है सरभंग । पाँचों इन्द्रिय चलत महादुःख, भाषत
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देवचंद चंग ! | चे० ||४||
पाठान्तर + इम भाषत देवचंद
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२- चंचल
श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
७- जिह्वा
३- स्पर्श के लिये
-भौंरा
४- बंधा हुआ
ह-हरि
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५ - हाथी
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