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झूठ' कथकनो मुख कह्यो रे, नगर नी छार समान । तिरिय नरय गति में भमे रे, पामे दुःख विरण ज्ञान || चतुर० ||२||
श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
शीतल चंदन चंद्रथी रे, मीठी वाणी सुहाय ।
देव दाह वली पालवे रे, मधुर वचन जग प्रिय छे रे, मधुर सत्य भाषी तरणे रे,
वचन दाह न खमाय || चतुर० ||३| कटुक सत्य परण छोड । दरिसरण थी सुख क्रोड || चतुर०||४||
शुचि वादि नर जे अछे रे, सफल जन्म तसु धार । झूठा बोला मानवी रे, व्रत श्रुत संजम भार नो रे, सत्य वचन छे कोष ।
देव दानव न करी सके रे, ते उपर तिल दोष || चतुर० ||६||
किम उतरे भव पार ।। चतुर०॥५॥
आनंद कारी ए चंद्रज्यु रे, पाय नमे जसु देव ।
रूप जाति धन तापस योगी मूंडीया रे, नागा चीवर धार ।
कूड़ वचन कहेता थका रे, ते छे पातक कार || चतुर०||८|| तोय न बोले अलीक ।
बाधे धन परिवार जो रे,
तो ही न ए सम ठीक ॥ चतुर ||६|| ज्ञान हीन मुख रोग ।
अन्य पुण्य सहु तोलतां रे, बहिरो शठ ने बोबड़ो रे, योनि वली खर श्वाननी रे, पामे कूड़ने योग || चतुर ||१०| सातादिक गुण गण तरणा रे, कूड़ करे छे हारण । सुहसंग न कीजिए रे, झूठ वचन दुःख खारण || चतुर० ।। ११ ।।
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२- स्वप्न में भी
हीन ज्यु रे, तेहने एहीज टेव || चतुर० ||७||
१- झूठ बोलने वाले के मुख को नगर खालकी उपमा दी है।
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