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पंचम खण्ड
वंदनीक ऋय जगत में रे, वधे द्रव्य परिवार । सत्य वचन थी सुख लहे रे, शुचि वादी प्रणगार चितुर०॥१२॥ पर कारण वच झूठ का रे, बोल्यां दे दुख लक्ष । ग्रस्त्य वचन थी दुःख लह्यो रे, वसु राजा परतक्ष ॥चतुर०।।१३।। मानव दानव सुरपति रे, ग्रह खेचर जन पाल । वंदे जिन ते पण कहे रे, सत्य वचन व्रत पाल ।।चतुर०।१४।। सत्य वचन थी सुख लहे रे, सत्य वचन सुख खाण । सत्य वचन कहो प्राणीया रे, देवचंद्रनी वाण ॥चतुर०।।१५।।
चोरी त्याग सज्झाय
पर धन आमिष' सारिखो रे, दुःख दे पन्नग जेम । तसु विश्वास न को करे रे, तो प्रादरिये केम ॥चतुर नर।। परिहर चोरी संग, चोरी थी दुख ऊपजे रे। वलि होय तन नो भंग, चतुरनर परि।।१।। भ्रात पिता सुत मित्र थी रे, तूटे तेह नो नेह । मानव थी डरतो रहे रे, मृग जेम भय नो गेह ।।चतुर॥२॥ क्षण एक नींद करे नहीं रे, मरण थकी भय भ्रत । जो को मुझ ने जाणशे रे, तो करशे मुझ अंत चतुर०॥३॥ विद्या गुरुवाइ गमे रे, निज रक्षरण नवि थाय । सज्जन पण निंदा लहे रे, तस्कर संग पसाय ।।चतुर०।।४।।
१-मांस
२-सर्प
३-गौरव
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