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________________ १४० ] रागादिक सुं मली ने चेतन ! पुद्गल संग भमो । चउगति मांहे गमन करता, निज प्रातमने दमो || हो चेतन ॥ २ ॥ ज्ञानादिक गुण रंग धरीने, कर्म को संग वमो | प्रतम अनुभव ध्यान धरता, शिवरमरणी सुं रमो || हो चेतन || ३॥ परमातम नुं ध्यान करंतां, भवस्थितिमां न भमो । देवचंद्र परमातम साहिब, स्वामी करीने नमो | हो चेतन ० ||४॥ पंचेन्द्रिय विषय त्याग--पद चेतन ! छोड दे, विषयन को परसंग, X गिरोह' फिरत विलोल फरस' वश, बंधोइ फिरत मातंग | | ० | १॥ कंठ छैदायो मीन आपनो, रसना के परसंग | १ - गिलारी. ६- मछली ६ नेत्र विषय कर दीप शिखा पै, जल जल मरत पतंग || चे० ॥२॥ G षट्पद' जल मांहे फस मूरख, खोयो अपनो अंग ! वीणा शब्द सुन श्रवण ततखिन, मोही मर्यो रे कुरंग' ||०||३|| - एक एक इंद्रिय चलत बहु दुःख, पायो है सरभंग । पाँचों इन्द्रिय चलत महादुःख, भाषत + देवचंद चंग ! | चे० ||४|| पाठान्तर + इम भाषत देवचंद Jain Educationa International २- चंचल श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष ७- जिह्वा ३- स्पर्श के लिये -भौंरा ४- बंधा हुआ ह-हरि For Personal and Private Use Only ५ - हाथी www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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