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________________ पंचम खण्ड हीयाली ( ढाल - १ राय कुर्यारि वर वाई भलो भर तार ए देशी) तात । इक नारि रूपें रूवड़ी, जनमी ज साते मलपती मानव भूलरे, सगलां चित्त सुहात ॥ १ ॥ कह्यो रे चतुर नर एह हीयाली सार, जो तुम्ह सुगुरण विचारप्रकरणी । बोले न भरता संग | भरतार पासे नित रहे, प्रवर पुरुष प्रावी मिल्यां, वात करे मन रंग || ० || २ || दोइ नेत्र पति साम्हा सदा, देखे न पति नो अंग । वातालू जीहा' विना, मोटा कांन अभंग | | ० ||३|| विचि २ उज्जल नर मनोहर, भरि साख द्ये हुंकार । पर खंधइ न चढइ कदे, चरण विना चले सार | | ० ||४॥ इक नारि सुँ जस वैर छे, वे वै न शीतल ताप । देवचंद्र भाषे तेहनो, मोटां सुँ मेलाप || क० ||५|| झूठ त्याग सज्झाय मोह वशे श्रवरणे सुण्या रे, बोल्या दुःख नो धाम । ध्वज' कोलक इण संगथी रे, इरण भव साधे काम || चतुर० नरः । परिहर वचन अलीक, 'ए तो दुःख दायक तहकीक ॥ च० परि०॥१॥ १- गूड़ार्थक-काव्य ४- नामविशेष Jain Educationa International २-सात पिता से जन्म हुभ्रा । ५-झल [ १४१ For Personal and Private Use Only ३- जीभ www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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