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पंचम खण्ड
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भ्रांति टली मुझ मन नी सघली, अनुभव अमृत पीधो । वीतराग' पण करुणा रीते, मुझ ने तेड़ी लीधो ।हवे०॥२॥ वारु कर्यु-जे तुम इहां अाव्या, त्रिभुवन पति गुरु दीठो । चउगति भ्रमण तणो भय वार्यो, पाप ताप सवि नीठो ।।हवे०॥३॥ अग्निभूति पमुहा इम चिंते, भाव चिंतामणि लाधो। एहनी सेव करी उल्लासे, निज परमारथ साधो हवे०।४।। कर जोड़ी वंदी इम भाखे, प्रभु सामायिक आपो।। सर्व असंयम दूर निवारी, अमने सेवक थापो ॥हवे०॥५॥ सामायिक प्रभु मुख थी पामी, संयत भावे आया । ... इंद्रादिक अनुमोदन करता, इंद्राणी गुण गाया ॥हवे०॥६॥ तत्त्व प्रकाश करो जगनायक, कर जोड़ी सवि मागे। तत्त्व प्रकाशक त्रिपदी आपी, करुणा निधि वीतरागे ।हरे०॥७॥ वीर वचन दिनकर कर फरसे, ज्ञान कमल विकसाणो। जीव अजीवादिक नो सघलो, वक्तव्य भाव जणाणो ॥हवे०॥८॥ द्वादश अंग रच्या तिण अवसर, वासक्षेप प्रभु कीधो। चउविह संघ तणो अधिकारी, श्री गणधर पद दीधो ।हवे०॥॥ त्रिशलानंदन सेवन करता, निज रत्नत्रयी गहीये । आत्म स्वभाव सकल शुचि करवा, देवचंद्र पद लहीये ॥हवे०॥१०॥
१-प्रभु ने भी करुणा करके, मेरा नाम लेकर बुलाया २-अच्छा हुआ ३-अपना काम .४-वीर जिनेश्वर के वचनरूपी सूर्य की किरणें ५-कहने योग्य ६-पवित्र
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