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पंचम खण्ड
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शुद्ध परगति भट विकट पराक्रमी सेनानी उच्छाह' ।।सु०॥ प्रायश्चित्त पागीवर चतुर छ, मित्र विचार अथाह ।।सु०।।८।। क्षमा नम्रता धृतिवर भावना, मार्गणता सु प्रसत्ति ।।सु०।। पुत्रीपिण रिण चालै मोह ना, दल भल टाल झत्ति ।।सु०।।६।। प्रासति' मत दंड नायक नीत नौ, सत्य वचन धन धार ।।सु०॥ गुरु उपदेस नगारा वाजता, शूकल ध्यान हथीयार ।।स०।।१०।। नय गम भंग प्रमाण निक्षेप थी, जे जीपे अरि वृद ।।।।। ध्यान सकति वधतां गुरण आदरै, काटै भव ना फंद ।।स०॥११।। समति विवेक बिनाए पातमा, भम्यो अनंतो काल ।।स०॥ . जिन धरम ल्यो हिव निरमलौ, सरणागत रख पाल ।।सू०।।१२।। क्षायक समकित वीरज सक तथी, क्षपक श्रेरिण रिण थान।।सु०।। पंच अपूरव करण प्रहार थी, मरद्या अपरि बल मान।।सु०।१३।। अश्व समी वलि कीधी करण सुंडाय स्थिति प्रा गाल ।।सु०।। एक श्वसू पिध्यान उद्योत थी, नांख्यो मोह उद्दाल ।।सु०।।१४।। ममता मोह गया समता मयी, प्रातम नृप सुविवेक ।।सु०॥ जीत नगारो वाग्यो ज्ञान नो, लही अविचल कर टेक ।।सु०।।१५।। देवचंद्र सुविवेक सहाय थी, भागा अरिदल वाह ।।सु०।। चेतन आनंद अतिसय वाधीयो, मंगल माल प्रवाह ।।स्०।।१६॥
५-उत्साह २-क्षमा, नम्रता, धृति, भावना, विचारणा एवं शुभरागादि पुत्रियां है। {-धर्मश्रद्धा न्यायाधीश है। ४--युद्ध का मैदान ५-स्थितिघात, स्थितिबंध, रसघात, गुणश्रेणि, गुणसंक्रम ये पांच अपूर्व बातें-शस्त्रप्रहारतुल्य हैं, जिनसे अपरिमित मोह लि नाश होता है। ६-शत्रु सेना-घोड़े आदि
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