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तृतीय खण्ड
जे भूप ग्राम सहज संपति शक्ति व्यक्ति पर करी स्व द्रव्य क्षेत्र स्वकाल भावे गुण अनंता ग्रादरी स्व स्वभाव गुरण पर्याय परणति सिद्ध साधन पर भरणी मुनिराज मनसर हंस समवड़ नमो सिद्ध महागुणी ||२||
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प्राचारज मुनि पति गरिण, गुरण छत्तीसी धामो जी चिदानंद रस स्वादता, परभावें निःकामो जी
निःकाम निर्मल शुद्ध चिदघन साध्य निज निरधार थी निज ज्ञान दरसरण चरण वीरज साधना व्यापार थी भवि जीव बोधक तत्व सोधक सयल गरिए संपतिधरा संवर समाधी गत उपाधी दुविध तप गुरण श्रागरा ॥३॥ खंतिया मुत्ति युद्मा प्रज्जव मदव जुत्ता जी सच्च सोय अकिंचरणा तब संजम गुण रत्ता जी जे रम्या ब्रह्म सुगुत्ति गुत्ता, समिति सुमित्ता श्रुतधरा स्याद्वाद वादें तत्व वादक ग्रात्म पर विभजन करा |
भव भीरू साधन धीर सासन वहन धोरी मुनिवरा । सिद्धांत वायरण दान समरथ नमो पाठक पद धरा ॥४॥ सकल विषय विष वारि नै निक्कामी निसंगी जी भव दव ताप समावता प्रातम साधन रंगी जी
मुनियों के मनरुपी सरोवर में हंस-समाज २-क्षमा, निसंगता, सरलता, कोमलता, -- सत्य, शौच, आकिंचन्य, तप, संयम आदि गुरणों से युक्त
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