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तृतीय खण्ड
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प्रतिकूल प्राश्रव त्याग संयम तत्त्व थिरता दम मयी सुचि परम खंती मुत्ति दस पद पंच संवर उपचयी सामायि कादिक भेद धर्मे यथा ख्य.ते पूर्णता
अकषाय अकूलस अमल उज्वल कर्म' कसमल चूर्णता ।।८।। इच्छा रोधन तप नमो, बाह्य अभितर भेदें जी प्रातम सत्ता एकता, पर परिणति उच्छे दे जी
उच्छेद कर्म अनादि संतति जेह सिद्ध परणो वर योग संग पाहार टाली भाव अाक्रयता करे अंतरमहर्ते तत्त्व साधे सर्व संवरता करो निज प्रात्म सत्ता प्रगट भावै करो तप गुण पादरी ।।६।। इम नवपद गुण मंडलं चो निक्षेप प्रमाणे जी मात नये जे पादरै सम्यग् ज्ञाने जारण जी निर्धार सेती गुणी गुणनो करै जे बहुमांन । तमु करण ईहा तत्त्व रमण थाय निर्मल ध्यान ए इम सुद्ध सत्ता भिल्यो चेतन सकल सिद्धी अनुसरे
अक्षय अनंत महंत चिदघन परम पाणंदता वरै ।।१०।। ।।कलश।। इअ सकल सूखकर गुण पुरंदर सिद्धचक्र पदावली
सविलद्धि विज्जा सिधि मंदिर भविक पूजो मन रली उवझाय वर श्री राजसारह ज्ञानधरम सुराजता गुरु दीपचंद सुचरण सेवक देवचंद्र सुशोभता ।।११॥ .
१-काम
२-गुरण गुरणी नो
३-इम सयल
४-विद्या सिद्ध
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