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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पोयूष
भेदरत्नत्रय रीत साधन जे मुनि ने हतो हो लाल । तेह अभेद स्वभाव ध्यान बले कीधो छतो हो लाल ।।६।। तत्त्व रमण एकत्त्व रमतां समाता तन्मयी हो लाल । पंच' अपूरव योग करम थिती भागी गई हो लाल ॥१०।। अश्व समी करणेण कर्म प्रदेसें अनुभव्या हो लाल । कीटी' करणे मोह चूरण करि निरमल ठव्या हो लाल ।।११।। क्षीणमोह परगणाम ध्यान शुकल बीजोधरें हो लाल । घाती क्षय लयलीन केवल ज्ञान दशा वरें हो लाल ।।१२।। थया अयोगि असंग सैलेसी घनता लही हो लाल । अव्याबाध अरूप सकल पूरण पद संग्रही हो लाल ।।१३।। सिद्ध थया मुनिराज काज संपूरगा नीपनो हो लाल । सुद्धातम गुरण भोग अक्षय अव्यय संपनो हो लाल ।।१४।। नाग दंसण संपन्न असरीरी अविनश्वरू हो लाल । चिदानंद भगवान सादि अनंत दशा धरू हो लाल ।।१५।। वीस कोडि मुनिराय, सिद्ध थया शत्रुजय गिरे हो लाल । ते कालें जयसाधु, कोडि तीन थी शिव बरे हो लाल ।।१६।। नारद मुनि लही सिद्ध साधू एका लाख थी हो लाल ।
१-स्थितिधात, रसधात - गुणश्रेणि, गुण संक्रम एवं अपूर्व स्थितिबंधरूप पांच योग २-मोहनीय कर्म के भेदरूप अतिसूक्षम लाभ को रसकस हीन बनाकर क्षय करना। ३--पांच पाण्डवमुनि २० क्रोड़ मुनियों के साथ सिद्धाचल पर मोक्ष गये हैं। ४-नारदमुनि एक लाग सुनियों के साथ मोक्ष गये ।
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