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पंचम खण्ड
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भाख्यो ए अधिकार 'सेज महातम' मांहि थी हो लाल ।।१७।। एहवा संजमधार पार लह्यो संसार नो हो लाल । वदो सवि नर नारि समर। सुगुण भडार नो हो लाल ।।१८।। पाठक श्री दीपचंद सीस गणी इम मगले हो लाल । वंदे मूनि देवचंद सिद्धा जे सिद्धाचले हो लाल ॥१६।।
द्राविड़ वारिखिल्ल मनि सज्माय धन धन मुनिवर जे संजम वर्या जी परिहर्या पाप अढार रे । समता प्रादरी मुनि ममता तजी जी, सम्यक् क्षमा दया भंडार रे।।ध०॥१।। ऋषभ वश द्रविड़ नृप पुत्र बे जी, द्राविड़ अने बीजो वारि खिल्ल रे। भूमि निमित्त रण' रसीया थका जी तापस संयोगे काढयो सल्ल रे।।ध.॥२॥ संजम लीधो भट' दश कोड़ि थी जी, पहुँता सिद्धाचल गिरि शृंग रे । अरणशण करी निज तत्त्वे परिणम्या जी।
त्रिविध त्रिविध वोसिरावी संग रे ॥ध० ॥३।। रत्नत्रयी रमी प्रातम संवरीजी, अोलखी छड्यो सर्व विभाव रे । प्रत्याहार करी धरी धारणाजी, वलग्या निर्मल ध्यान स्वभाव रे।।ध.॥४।। मैत्री भाव भजी सवि जीवथी जी, करूणा भाव दु:खी थी तेम रे । पंच गुगगी नी नित्य प्रमोदता जी, शुभा शुभ विपाके मध्य प्रेम रे ।।ध.।।५।।
१-राज्य के लिये युद्ध करते हुए २-दशक्रोड मुनियों के साथ द्राविड और वारिखिल्ल ने दीक्षा ग्रहण की और मोक्ष गये ।
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