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तृतीय खण्ड
ज्ञान पंचमी नमस्कार
सकल वस्तु प्रतिभास भानु, निरमल सुख कारण । सम्यग् दर्शन पुष्टि हेतु भव जल निधि तारण || संयम तप आनंद कंद, अन्नारण' निवारण | मार विकार प्रचार ताप, तापित जन ठाररण ॥१॥ स्यादवाद परिणाम, धर्मं परणति पfeater | साहु साहूणी संघ सर्व,
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मोह तिमिर विध्वंस सूर
शुद्ध,
आतम शक्ति अनंत मति श्रुत अवधि विशुद्ध नारण, भेद पंचाश* क्षयोपशमिक, इक
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प्राराधन
सोहर ||
मिथ्यात्व परासरण | प्रभुता परगासण २ ॥
दोय परोक्ष प्रथम तिहां, सकल प्रतक्ष प्रकाश भास, धर्म सकल नो मूल, शुद्ध बारह अंग प्रधान खंध, साखा श्री निरयुक्ति भाष्य चुरण टिका पत्र पुष्प,
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मरण पज्जव केवल ।
क्षायिक निरमल ।।
देशत ।
दुग परतक्ष ध्रुव केवल अपरिमित || ३ || त्रिपदी जिन भासे । गणधर सुप्रकास || पडिसाखा दीपै । संशय सवि जीवै ||४||
२ -- काम - विकार जन्य ताप से तप्त जनों को ठारने वाले । ४- ज्ञान के पच्चास भेद क्षायोपशमिक भाव वर्ती है । ५- केवल ज्ञान क्षायिक भाववर्ती है ।
१- अज्ञान ३- सूर्य
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