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श्रीमदू देवचन्द्र पद्य पीयूष
श्री लींबड़ी शान्ति जिन स्तवनम्
आवो सजन जन जिनवर वंदन श्री शांतिनाथ गुण वृदा रे । जस गुण रागे निज गुण प्रगटे, भांजे भव भय फंदा रे ॥१॥प्रा०॥ विश्वसेन अचिरानो नंदन, पूरण पुण्ये लहोये रे । ध्यान एक तत्वे तत्त्व विबुद्ध, शुद्धातम पद ग्रहीये रे ।।२।।प्रा०॥ संवत अढारसे साते (१८०७)वरसे, फागुन सुदि बीज दिवसे रे। श्रीशांति ज़िनेसर हरषे थाप्या,अति बहुमाने शिवसुख वरसें रे ।३।।प्रा०॥ लोंबड़ी नयरी मंडण मनोहर, शांति चैत प्रसिद्धो रे। वृद्ध शाख पोरवाड़ प्रगट जस, वोहरे डोसे कीधो रे ।।४।।प्रा०॥ जिन भगते जे धन आरोपे, धन धन तुसी मतधारो रे । गुणी राग थी तनमय चीत्ते, पुद्गल राग उतारो रे ।।५।।प्रा०॥
तीर्थकर गुण रागी बुद्धे, रत्नत्रयी प्रगटावो रे । देवचंद्र गुण रंगे रमतां, भव भय पूर्ण मिटावो रे ॥६॥या०॥
___ इति स्तवन सम्पूर्ण
(पूर्वोक्त स्तवन आनंद जी कल्याण जी पेडी भंडार लींबड़ी पत्र १ में से उद्धत!
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