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द्वितीय खण्ड
भतपयन्ना' सूत्र मां, नव क्षेत्र वखाण्या । महानिशीथे पूजता, फल अद्भूत जाण्या ।।नवा०।।।। भगवई अनयोगद्वार मों, निरयुक्ति प्रमाणी। ते मांहे पूजा चैत्य नी, विधिसर्व वखांणी ।।नवा०॥१०॥ संपाविरो' कामे कहियो, जिन प्रागलि नमंता । संपताणु उचरयु, प्रतिमा संस्तवतां ।।नवा०।११।। पावसक पंचांगीन, पोस्तक थयु पहित्नु । जे अधिकार तिहां लिख्यां, विधि पूर्वक बहिनु ।।नवा०।।१२।। अन्यसूत्र लखतां थकां, न लिखु ते विगते । ते माटें संका किसी, जिन पूजा भगते ।।नवा०।।१३।। पुस्तकारूढ जेणे करया, तस वचन कालोला । चूर्णिमई पूजा कहीं, सी' संका भोला निवा०॥१४।। नाम निखेपो उचरि, नमतां पाणं दै । नाम थापना दुगभणी, स्या माटे न वंदे ॥नवा०॥१५॥ विनय वेयावच दान में, हिंसा नवि लेखइ । अछती हिंस्या दाखवी, कां पूजा उवेखइ ।।नवा ।। १६॥
-भक्त प्रत्याख्यान नामक सूत्र। २-नमस्कार करते हुए वहां जिसके सारे कार्य संद्ध हो गये हैं। ऐसा कहा है, यह भगवान् के सिवाय दूसरों के आगे नहीं कहा ॥ सकता। इससे सिद्ध है कि वह जिनप्रतिमा का ही अधिकार है। -हे भोले-फिर क्या शंका है। ४-विनय-सेवा-दानादि में तो हिंसा नहीं मानते हैं, और प्रभु-दर्शन, पूजन में हिंसा मानते हैं, यह कैसा अज्ञान ।
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