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द्वितीय खण्ड
श्री सम्मेत शिखर तीर्थ स्तवन
ढाल - सुंबरानी देशी
श्री सम्मेतशिखर वरु, तीरथ सिरदार ।
जिहां जिनवर शिवपद लह्य', मुनिवर गणधार || श्री समे० ॥ १ ॥
श्री अजितादिक जिनवरु', चोविहसंघ समेत ।
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श्राव्या इरण गिरि ऊपरे, धारी शिव काउसगा मुद्रा धरी, करी योग सकल प्रदेश अकंपना, शैलेशी
कर्म अघाती खेरवी *,
अविनाशी
अनंत ।
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फुसमा गतिथी लह्य ु, इक समय लोकांत || श्री समे० ॥४॥ एकांतिक प्रात्यंतिको, निरद्वद महंत । व्याबाधपणे * वर्या, कालै
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सादि अनंत || श्री समे० ॥ ५ ॥ गुरण आणंद |
गुण वृंद || श्री समे० ॥६॥
संकेत || श्री समे०॥२॥
निरोध ।
शोध || श्री ससे० ॥३॥
सिद्ध बुद्ध तात्विक दशा, निज ग्रचल अमल उत्सर्गता, पूरण ए तीरथ वंदन करयां, सहु सिद्ध सिद्धालंबी चेतना, गुण साधक करतां थकां, थाये निज सिद्धि |
साधकता
देवचंद
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वंदाय |
थाय || श्री समे० ।।७।।
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पद अनुभवै तत्वानंद समृद्धि || श्री समे० ||८| इति श्री सम्मेत शिखर वीस जिन स्तवनम् संपूर्णम्
१- वर्या । २- जिनवरा । ३-ए । ४- एक । ५-परशुं । * ग्रघाती कर्मों को खपाकर ।
+ प्रकाश प्रदेशों को न छूते हुए ।
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