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द्वितीय खण्ड
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चूडा नगर मंडन श्री मुविधिनाथ स्तवन
(ढाल-नांनो नाहलो रे-ए देशो) सुविधि जिनेश्वर ! वीनती रे, दासतणी अवधार, साहेब सांभलो रे।। त्रिभुवन' जागग पागले रे, कहेवो ते उपचार ।।सा०॥१।। प्रभु छो परम दया निधि रे, सेवक दीन अनाथ ।सा०। उवट' भव भमतां भरगी रे, तुझ शासन वर साथ ॥सा०।२।। मैं पुग्दल रस रीझ थी रे, विसरयो निज भाव ।साल। आपा पर न पिछारणीयो रे, पोष्यो विषय विभाव ।।सा०।।३।। पुष्य धर्म करी थापीयी रे, विषय पोष संतोष ।सा। कारण कारज न अोलख्यो रे, कीधो राग ने रोष ।।सा०॥४॥ प्रभु प्राणा चित्त नवि रमी रे, सेव्यो पाप स्थान ।सा०। ममता मद मातो थको रे, चित्त चिते दूर्ध्यान ।।सा०।।५।। रामा नंदन प्रभु मिल्यो रे, सुग्रीव भूप कुल चंद ।सा०। श्वेत वर्ण ध्वज' मीन' नो रे, समता रस मकरंद सा०॥६॥ चूडापुरे चूडामणि रे, मन मोहन जिनराय ।सा०। देवचंद्र पद सेवतां रे, परमानंद सुख पाय ।।सा०॥७।।
१-तीनों भुवनों के स्वरूप को जानने वालों के सामने कुछ भी कहना एक औपचारिकता है। २-भव में भ्रमण करने वालों के लिये आपका शासन अत्यन्त ही कल्याणकारी है। ३-स्व-पर को ४-राग-द्वेष ५-चिन्ह ६-मछली
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