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श्री पद्मनाभ जिन स्तवन .
(मारग देशक मोक्ष नो रे--ए देशी) श्री वीर प्रभु उपगार थी रे, श्री रिणक गुण धाम । क्षायक श्रद्धा गुण वसे रे, नीपायो जिन नाम रे ॥१॥ प्रथम जिनेसरू, भावी भरत मझारो मुझनें तारस्यें, भवि आस्या आधारो रे प्र० ॥ांकरणी।।
वस्तु स्वरूप प्रकासता रे, ज्ञान चरण गुण खाण । वांदु प्रभुता ओलखी रे, तेहि जम्मु' सुविहाणो रे प्र०२ पद्मनाभ प्रभु देशना रे, साधन साधक सिद्ध । गौण मुख्यता वचन मे रे, ज्ञान तेसकल समृधो रे प्र०३
वस्तु अनंत स्वभाव छ रे, अनंत कथक तसु नाम । ग्राहक अवसर बोधथी रे, कहवे अर्पित कामो रे प्र०४
शेष अनर्पित धर्म में रे, सापेक्ष श्रद्धा बोध । उभय रहित भासन हवे रे, प्रगटें केवल बोधो रे प्र०५ छति परणति गुण वर्तना रे, भासन भोग आणंद । समकाले प्रभु ताहरें रे, रम्य रमण गुण वृदो रे प्र०६ वही मेरा जन्म सफल होगा।
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