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प्रथम खण्ड
ध्यानालंबन नाथ नो जी, ते तो सदा अभंग । तिगण प्रभु गुण ने जोइवै जी, जोइ तू अात्म अंग ॥ना० ॥११॥ प्रातमा भासन रमणथी जी, भेदे ध्यान पृथक्त्व । तेह अभेदे परगाभ्यो जी, पाम्ये तत्व एकत्त्व ॥ना०।।१२।। ध्यान लीन गौतम प्रभु जी, क्षपक रिण प्रारोह । घन घाती सवि चूरिया जी, कीनो पात्म अमोह ।।ना०॥१३॥ लोका लोक नी अस्तिता जी, सर्व स्व पर पर्याय । तीन काल ना जारणीया जी, केवल ज्ञान पसाय ॥१४ाना०॥ प्रभु प्रभु करतां प्रभु थया जी, श्री गौतम गुरुराय । ततखिरण इंद्रादिक भगी जी, एह वधाई थाय ।।१५॥ना०।। संघ सकल हरषित थयो जी, जाणी गौतम ज्ञान । कारण तूटि पडि नहीं जी, ए अम्ह पुण्य' अमान ॥१६॥ना०।। सुरपति नरपति जन सहूजो, चोविह संघ महंत । पाव्या गौतम पद कजे जी, जय जय शब्द कहंत ।।१७।।ना०॥ करि उच्छब पद थापीया जी, जग गुरू पाटे त्यार । इंद्रादिक वंदन करे जी, बैठा सभा मझार ॥१८। ना०॥ तीन भुवन हरषित थया जी, वीर `पटोधर देख । हर गुगण गावै घणा जी, चौविह संघ विशेष ॥१६॥ना०॥ वीर प्रभु पाटै थया जी, गौतम ज्ञान निधान । देवचंद्र वंदै सदा जी, समता अमृत थान ॥२०॥ना०॥
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