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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
श्री गौतम गुरू देशना, सांभलि उभ्या सर्व । सुर वर सहु नंदीसरें, पुहता भक्ति अखर्व ॥१॥ बार वरस केवलि पणे, विचरया गौतम स्वामि । अाठ वरस केवल निधी, श्री सुधर्म अभिराम ॥२॥ वरस चौमालीस केवली, श्री जंबू सुखकार । तास पछी श्रुत ज्ञान बल, चालें सासन सार ।।३।। इकवीस सहस वरस लगि, रहस्य वीर वचन्न । तसु आलंबन जे रमै, तेहिज जीव सुधन्य ॥४॥
(१०) ढालधन धन शासन श्री जिनवर नो, जिहां वर वाचक वंस रे। दुसम कालें जास प्रसादें, लहीय . धरम प्रसंस रे ॥१॥ध.॥ आर्य प्रभव सज्जभवसूरि, सूरि यशोभद्र स्वामी रे । श्री संभूति विजय श्रु त सागर, भद्र बाहु. वर नाम रे । २॥ध.॥ दश नियुक्ति छंद वर पागम, ऊधरया वन्तु स्वरूप रे । संपूरण द्वादश आगमधर, ज्ञान क्रिया विध रूप रे ॥३॥ध ।। थूलभद्र कोस्या प्रति बोधक, महागिरि सूरि सुहस्ति रे । बयर स्वामि लगि पूरब दशधर, युगप्रधान सुप्रशस्त रे ॥४॥ध.।। भाष्योद्धार कारक उपगारी, श्री जिनभद्र मुरिंणद रे । चूरण कर्ता श्रुत उद्धर्ता, श्री देवड्डि मुरिंगद रे ॥५ ॥
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