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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयू
तू क्षमी तू दमी तू हिं माईव मयी आर्यवी मुत्ति समता अनंती। तूं असंगी अभंगी प्रभू सर्व (A) प्रदेश गुण शक्तिवंती ॥प्र०।।५। प्रमाणी प्रमेयी अमेयी अगेही, अकंपात्मदेशी अलेशी अवेसो । स्वयं ध्यान मुक्तो सदा ध्येय रूपो, मुनी मानसे जेहनो वास देशो ॥प्र०।६।
सिद्ध थया जिण जांणि ने, इंद्रादिक सुर व्यूह । शोकातुर अातुर रडे, चोविह संघ समूह ॥१॥ है है नाथ वियोग थी, ए जीवन निक्काम । मोक्ष मार्ग साधन भरणी, किम् पुहचेंसी हाम ॥२॥ वीर वियोगें जीववो, तेह निठुर परिणाम । धन तन, वनिता संपदा, स्यू कीजि सुरधाम ।।३।। जग उपगारी वीछडच, स्य लेखै सुर शक्ति । .. प्रबल मनै करस्यु किहां, बहु विस्तारी भक्ति ॥४॥
(८) ढाल-मेरे नंदना-ए देशी.. . इतला दिन लगि जाणता रे हां, प्रभु सनमुख बहुवार मेरे साहिबा, वंदन विधि नाटक करी रे हां, लहस्यु लाभ अपार मेरे० ।।१॥ बोलो नाथ दयाल, किरपांनिधि करुणाल, तुझ वयणां गुण माल, थाए सर्व निहाल, तत्त्व रमण संभाल, थाये ज्ञान विशाल ।।मे।।२।।
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A-निज प्रात्म
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