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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
श्री गौड़ी पार्श्व जिन स्तवन
जग जीवन वीसमा, गिरुया' गोड़ी पास लाल रे । दरिसण देखण देवनो, अछे अधिक उल्लास लाल रे ॥जग०।।१।।
सुण सुण सुण सुण साहिबा, दास तणी अरदास लाल रे । पास करे जे प्रापनी, पूरजो तस पास लाल रे ॥जग०॥२।।
सन मन विकसे हो माहरो, दीठे तुझ दीदार लाल रे। मोहन मूत्ति मन वसी, सहज सलूणी सार लाल रे ॥जग।।३।।
नाम सुणतां जेहनो, विकसे साते धात लाल रे । ते जो सन्मुख भेटीये, तो कहो केहवी वात लाल रे ।।जग०॥४॥
जे दिन प्रभु पाय पूजसू, ते दिन धन्य वरणीश लाल रे । तुझ, दर्शन विण दीहड़ा, लेखे में न गरणीस लाल रे ।।जग०॥५॥
महिर नजर करी मुझ परे, अवगुण गुण करी लेह लाल रे । सेवक जाणी दया करी, अवसर दरिसरण देह लाल रे ।।जग०॥६॥
आठ पहोर समरण करे, धरी खरी एक तार लाल रे। ते चाकर नी स्वामी जी, कीजे अवश्य संभार लाल रे ॥जग०॥७॥
१-महान्
२-दिन
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