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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
श्री नेमिनाथ स्तवन
राग- सारंग
अायो री घन घोर घटा कर के (२) रटत पपीहा पिउ पिउ पिउ पिउ पिउ पिउ सर धरि के ।।प्रायो.।।१।।
वादर' चादर नभपर छाइ, दामिनी' दमकति झर के । मेघ गंभीर3 गुहिर अति गाजत विरहनी चित्त थर के ॥प्रायो.।।२।। नीर छटा विकटा सी लागत, मंद पवन फरके । नेमिनाथ प्रभु विरह व्यथा तव, अंग अंग करके ।।प्रायो.।।३॥ दादुर मोर शोर भर सालत, राजुल दिल धर के। देवचंद्र संयम सुख देतां, विरह गयो टरि के ।।प्रायो.।।४।।
१-बादल रूपी चादर प्राकाश में छाई है। २-बिजली चमकती है। ३-गंभीर। ४-वियोगिनी स्त्री का चित्त डोलता है।
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