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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
(२) ढाल-श्री सुपास जिनराज-ए देशी वर गणधर इग्यार, चउद सहस अरणगार,
अरणगारी हो सहस छत्तीस सुहामणी जी। श्रमणोपासक सार, इगलख अधिक हजार,
गुणसठ्ठी हो सोभंता देश विरति धरणी जी ।।१।। तिग लख श्राविका चारु, ऊपरी सहस अढार,
सम्यग् दृष्टि हो दरसन युत शिव मारग रसी जी । चउदस पुची, धन्य सव्वक्रवर संपन्न,
अजिग्गा जिरण संकासा तिगसय उल्लसी जी ॥२॥ वादी चउदसय धीर, परमत भंजक वीर,
पंचसया वाचंयम मरण नाणी खरा जी । निज दीक्षित मुनिराज, समता ध्यान समाज,
सात सया केवल नाणी सिद्धि वरधाजी ॥३॥ बैंक्रिय धर सय सात, षट जीवन पित मात,
राजे हो आज तेरस प्रोही जिण सया जी। अगुत्तर वाई मुनीस, गई ठई श्रेय ईस,
अनुभव अभ्यासी यतिवर अडसयाजी ।।४।। इत्यादिक परिवार, जिणवर पागाधार,
वृदे हो परिवरिया विचरै भूतले जी । दुरित डमर भय सोग, ईति भीति ना थोक,
नासें ही जिन पद रज फरसन ने बलें जी ॥५॥
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