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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
प्रभु स्मरण पद (तर्ज......... ..... .... बेर बेर नहिं आवे)
प्रभु समरण की हेवा' रे हमकु प्रभु० प्रभु समरण सुख अनुभव तोले, नांवे अमृत कलेवा रे.....हम कु.१ एक' प्रदेश अनंत गुणालय, पर्यय अनंत कहेवा रे.....हम कु.२ पर्यय पर्यय धर्म अनंता, अस्ति नास्ति दुग भेवा रे.....हम कु.३ प्रभु जाने सो सब कु जाने, शुचि भासन प्रभु सेवा रे.....हम कु.४ देवचंद सम तम सत्ता, धरो ध्यान नित मेवा रे.....हम .५
पद (राग--जय जय वंती) ज्ञान अनंतमयी, दान अनंत लई; वीर्य अनंतकरी, भोग अनंत है १ क्षमा अनंत संत, मद्दव अज्जव वंत; निष्पृहता अनंत भये, परम प्रसंत है २ स्थिरता अनंत विभु, रमण अनंत प्रभु; चरण अनंत भये, नाथ जी महंत है ३ देवचन्द को है इंद, परम आनंद कंदः
अक्षय समाधि वृद, समता को कंत है ४ १-पादत २-प्रभु-स्मरण से जो सुख होता है, उसके तुल्य सुख अमृत का कलेवा'
नहीं दे सकता है। ३-प्रभु का एक एक प्रदेश अनंत गुणों का प्राश्रय है और एक गुण की अनंत २ पर्याय है तधारक २ पर्याय में अनंत २६र्म है।
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