________________
[ पचास ]
श्रीमद् ने वर्णनात्मक सुन्दर टबा लिखा है। गुरु के लिये कितनी योग्यता आवश्यक है, इसका पूरा-पूरा खयाल इस छोटे से ग्रन्थ से हो जाता है। अतः गुरुपद लेने से पहिले जिज्ञासु आत्मा को एकबार यह ग्रन्थ अवश्य पढ़ना चाहिये। ९. तीनपत्र
ये तीनों पत्र सूरत की भाग्यशाली श्राविकायें जानकीबाई तथा हरखबाई को लिखे गये हैं। उस समय की स्त्रियां भी द्रव्यानुयोग जैसे गहन विषय में कितना रस लेती थीं-ये पत्र उसकी साक्षी हैं। आज जैन समाज तत्त्वज्ञान के क्षेत्र में कितना पिछड़ा है. यह दो सदी पूर्व श्रीमद् द्वारा लिखे गये इन पत्रों को पढ़ने से मालूम होता है।
१०. चौबीसी बालावबोध
__ श्रीमद् की अपनी चौबीसी पर ही यह बालावबोध है । इसमें स्तनों की मूलभावनाओं को विस्तृत रूप से विवेचित किया है । श्रीमद् ने चौबीसी पर स्वयं बालावबोध लिखकर अनुवादकर्ताओं के लिये सुगमता कर दी है।
११. बाहुजिनस्तवन टबा--
___विहरमान-जिन स्तवन' में से तृतीय बाहुजिनस्तवन पर श्रीमद् का स्वकृत ब्बा है। वीसी के एक ही स्तवन पर आपने ब्बा लिखा या सब पर लिखा इस विषय की कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है।
श्रीमद् के प्रसिद्ध गद्य-ग्रन्थों पर चर्चा करने के पश्चात् अब उनके कुछ मुख्य मुख्य पद्य ग्रन्थों पर भी थोड़ा विचार करलें।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org