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[अड़तालीस है। वैसे तो ज्ञानसागर का कोई पार नहीं है, किन्तु उसमें प्रवेश पाने के लिये ये तीन ग्रन्थ अति उपयोगी हैं। ४. विचाररत्नसार:
यह ग्रन्थ “यथानाम तथा गुण" है। इस ग्रन्थ में ३२२ प्रश्नोत्तरों के रूप में अमूल्य विचार-रत्नों का संग्रह है। प्रश्नों के उत्तर यथाशक्य सरल, शास्त्रीय एवं अनुभव ज्ञान से भरपूर हैं। खंडन-मंडन के उस युग में गच्छीय मान्यताओं के विवादग्रस्त प्रश्नोत्तरों से दूर रहकर विशुद्ध आत्मज्ञान और तत्व ज्ञान संबंधी साहित्य की रचना, श्रीमद् की महान् अध्यात्मनिष्ठा एवं उच्च मनोवृति की सूचक है ।
प्राकृत संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् होते हुए भी इस ग्रन्थ की भाषा में रचना, जन साधारण के लिये आपकी हितदृष्टि की परिचायक है। वस्तुत: इस ग्रन्थ का अध्ययन करने वाला तत्वज्ञानी महासागर के अमूल्य रत्नों का कुछ भागी अवश्य बनता है। ५. छटक प्रश्नोत्तर--
विचार रत्नसार में तो श्रीमद् ने स्वयं हो प्रश्न उठाकर उसका उत्तर दिया है । किन्तु इस ग्रन्थ में, राधनपुर, थराद् एवं जामनगर के भंसाली आदि तत्वजिज्ञासु श्रावकों द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर हैं। ये प्रश्नोत्तर विस्तृत एवं स्थान स्थान पर शास्त्रीय पाठों और साक्षियों से भरपूर हैं ।
दोनों ही 'प्रश्नोत्तर' आगम ज्योतिष, परंपरा, एवं विधि, आदि अनेक विषयों से संबंधित हैं। ६. ज्ञान मंजरी--
यह सत्तरहवीं सदी के प्रकाण्ड विद्वान् उपाध्याय श्री यशोविजयजी के सुप्रसिद्ध ग्रन्य पर ज्ञानसार पर श्रीमद् द्वारा रचित संस्कृत भाषामय अपूर्व टीका हैं।
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