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प्रथम खण्ड
मंगल धरम उछव समै जैन पद कारण उत्तम मंगल प्राचर ए। भाव मंगल तिहां देव अरिहंत प्रभु जेहथी परम मंगल वरै ए ॥ तेहना नाम नै जाउ हूं भामणे' खिण खिण हरख समरण करै ए। पंच कल्याणके जेम सुरपति करै तेम जिन भगति भवि आदरै ए ॥१॥ भाव मंगल तणी पुष्टता' कारण द्रव्य मंगल भला कीजिये ए। तिहां गुण पूर्णता ईछता भविक जन कुभ थिर पूरण लीजिये ए॥ पदम आसन ठव्यो पदम पौ व्यौ मंत्र पवित्र थी जापीय ए। जिनवर जिमण दिसि हरख भर हीय पूरण कलश नै थापिय ए ॥२॥ माहरा नाथ नै परम मंगल हुज्यो मंगल संघ चोविह मणी ए। मंगल तीर्थ ने मंगल चैत्य ने मंगल तेह करता भरणी ए॥ मंगल सिद्धाचले मंगल गिरनार मंगल तेह करता मणी ए। जैन शासन तणो हरखि मंगल करै तेण पाणंद अति ऊपजै ए॥ च्यवन (अवन)अवसर सभै मोत न। गर्भ में इन्द्र नै हरख जे संपजै ए ॥३॥ सेम प्रासाद नी थापना अवसरै कूभ थापन समै हरखीय ए। जेम संसार नाकारज कारण लोक संसार मंगल कर ए ॥ सेम जिन धर्स ना वृद्धि नै कारण श्राविकासु विधि मंगल धरै ए। परम आनंद भरि धन्यता मानतां गीत मंगल धुनि ऊचर ए॥ देवना देवने मंगल कीजतां देवचन्द्र पद अनुसरे ए ॥४॥
॥ इति मंगलम् ॥ -पुष्टि नै २-जमणी दिसे ३-हियडले ४-कारण बलिहारी, न्यौछावर २-प्रभु के दांई और कलश रखना।
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