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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
नमस्कार
त्रिभुवन जन आनन्द कंद चंदन जिम सीतल ज्ञान भानु भासन समस्त जीवन जगती तल उत्कृष्टे जिनराज देव सत्तरिसो' लहीयै नव कोडी केवलि मुनीस सहस नव कोड़ी कहियै ।।१।। वर्तमान जिन ईस वीस दो कोड़ी केवलि महस कोडि दुग साधु संत वंदो नित वलि वलि । प्रणमी गणधर सिद्ध सर्व खामि सवि जीव आलोई पातक अढार मिथ्यात्व अतीव ॥२॥ सुकृत क्रिया अनुमोदि जीव भावो इम भावना तजि स्यूहु कर्म सवि विभाव परभाव कुवासन तत्त्व रमण रस रंग राचि रत्नत्रय लीनो सुद्ध साधन रसी निज अनुभव भीनो ॥३॥ करी कर्म चकचूरि भूरि केवल पद पामी अव्याबाध अनंत शान्ति लहस्यु हुं स्वामी ए रुचि ए साधन सदीव' करतां सुख लहीयै देवचंद सिद्धान्त तत्त्व अनुभव रस गहीये ॥४॥
व इति नमस्कार
..:.१- १७० .
२- सदैव
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